हरियाणा के दिग्गज नेता रहे देवी लाल ने देश की आज़ादी के आंदोलन से लेकर देश से उप प्रधानमंत्री पद तक का लंबा सफ़र तय किया था. वो सत्ता में रहे हों या फिर सत्ता से बाहर, कई दशक लंबे अपने सियासी करियर में वो हरियाणा की ग्रामीण जनता के बीच हमेशा ही लोकप्रिय रहे थे, जो उन्हें प्यार से ताऊ कहा करती थी.
देवी लाल के देहांत के 18 साल बाद आज उनके सियासी विरासत टुकड़ों में बंट गई है और अलग-अलग राजनीतिक दलों में नज़र आती है. आज जो बीजेपी केंद्र से लेकर हरियाणा तक सत्ता में है, देवी लाल के दौर में वो बीजेपी देवी लाल की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल की जूनियर पार्टनर हुआ करती थी. देवी लाल ने इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना अपने आख़िरी दिनों में की थी. हालांकि, एक वक़्त ऐसा भी था जब बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में आईएनएलडी बड़े भाई की भूमिका में रहा करती थी. फिर भी बीजेपी के कार्यकर्ता अक्सर आईएनएलडी के नेता ओम प्रकाश चौटाला पर अपने साथ बुरा बर्ताव करने के आरोप लगाया करते थे.
लेकिन, आज हालत ये है कि पार्टी में फूट के बाद आईएनएलडी आज हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने की स्थिति में भी नहीं है. आज हरियाणा की सिरसा, रनिया, मेहम और करनाल सीटों पर आईएनएलडी के प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. चुनावी राजनीति में इन बातों की बहुत अहमियत होती है. सिरसा और रनिया सीटें, सिरसा ज़िले में आती हैं, जो इंडियन नेशनल लोकदल का मुख्यालय कहा जाता है. वहीं, मेहम सीट आईएनएलडी के लिए इसलिए अहम है क्योंकि यहां से ख़ुद देवी लाल तीन बार विधायक चुने गए थे. करनाल सीट की नुमाइंदगी इस वक़्त हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर करते हैं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के 11 विधायक टूटकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. वहीं, चार विधायक पार्टी से अलग होकर बनी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का हिस्सा बन गए थे, जिसकी अगुवाई अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला कर रहे हैं. जबकि आईएनएलडी के दो विधायकों का देहांत हो गया था.
यानी अब स्थिति ये है कि 2014 में आईएनएलडी के टिकट पर जीते विधायकों में बस ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला और लोहारू के एक विधायक ओपी बरवा ही बचे हैं |